“एक ,दो,तीन.…………सात,आठ। ” मन ही मन बबलू ने टेबल की गिनती की।
बारिश थम चुकी थी किन्तु गीली मिट्टी की सौंधी सुगंध अभी भी हवा में रची बसी थी। बबलू और सरजू मेंगाराम के रेस्त्रां के एक कोने में अपनी उपस्थिति लगाये खड़े थे। तय हुआ की चार टेबल बबलू साफ करेगा और चार सरजू।
“दो रुपये के हिसाब से हुए सोलह रुपये, ” बबलू ने मन ही मन हिसाब लगाया , “……………माने की आठ सरजू के और आठ मेरे। दो रुपये फिर भी कम हैं। ”
चिंता की लकीरो ने नन्हे माथे पे डेरा डाल दिया। बाकी के दो रुपये कहा से लायेगा। जब ईश्वर मुसीबत देता है तो हल निकालने के लिए बुद्धी भी दे देता है। मन ही मन समाधान निकाला की दो रुपये सरजू से उधार ले लेगा। क्या दो रुपये भी न दे सकेगा , आख़िर दोस्त है मेरा। शायद ही आज से पहले सरजू को देख कर इतनी ख़ुशी हुई थी बबलू को। ख़ुशी से आँखों में टिम -टिम तारे चमकने लगे थे।
” ऐ छोकरों ,” मेंगराम की गर्जन सुन के नन्हे दिल की धड़कन दो पल के लिए थम गई। “अब क्या आरती उतारें तुम लोगो की? तब ना हिलाओगे हाथ। चलो लगो काम पे। ”
दोनों ने चुपचाप कोने में पड़े कपडे उठाये और लग पड़े अपने अपने काम पे। जो काम इतना सरल नज़र आता था वो पहाड़ के मानिंद निकला।चाहे कितनी भी चमक लाते, मेंगाराम को कम ही लगता।
मेहनत के २० मिनट २० वर्ष जैसे लगे। रुपये कमाने इतने कठिन होंगे दोनों ने सोचा न था। बीच – बीच में मेंगाराम की झिड़कियाँ अलग। आज ही दोनों के शब्दकोष में कई नए ‘ शब्द ” और जुड़ गए थे। बबलू को याद आया एक बार ऐसा एक “शब्द ” बोलने पर माँ ने कितनी पिटाई की थी।
“गाली बकेगा? ले बक गाली। ” माँ ने बांस की सोटी से सावले कोमल शरीर पर अनगिनत लाल लकींरे खींच दी थी।
” मा … माफ़ क…अह अह अह .. र क….. र दो माँ , न…..अह अह अ…….. ह हीं बोलु…… गा। ” सिसकियो के बीच बड़ी मुश्किल से अटके शब्द निकल पाये थे।
आज ऐसे कितने ही बुरे शब्द अबोध कानों को बेरहमी से बींध गए थे।
मेहनत की कमाई आखिर मेहनत की ही होती है और अगर उसमें कष्ट और दर्द भी जुड़ जाए तो उसका मोल नही होता। उसमे जो सुख और संतुष्टि होती है वह दान में दिए गए लाखों रुापये से भी नहीं मिलती। मेंगा राम ने अपने “टाइम खोटी “करने के लिए एक-एक रूपया दोनों से काट लिया। सात रुपैयो के सिक्के की चमक दोनों के चेहरे पे नज़र आने लगी। होती भी क्यूँ ना ,पहली कमाई जो थी।
बबलू ने दो सिक्कों को ग़ौर से उल्टा पुल्टा। दो पल की ख़ुशी पे काले बादल छा गए। दो रुपये तक तो ठीक था ,पर क्या सरजू तीन रूपया देगा? उसको भी तो एक रुपया कम मिला है।
“अच्छा सुन.… ”
“अं …….. ” , सरजू को जैसे किसी ने नींद से जगा दिया हो।
“तू मेरा दोस्त है ना ? ”
“हाँ ,तो । ऐसा क्यूँ पूछता है रे ?
“तो सुन ना , मुझे तीन रुपैये उधार देता है?, सात में नहीं आएगी डबल रोटी। ”
सरजू को जैसे सांप सूंघ गया हो। अभी अभी तो हाथ में अपनी कमाई आई है, ऐसे कैसे दे दे? अरे ना आती हो तो ना आये मुझको क्या है।
“ऐं.… ऐं। अरे ऐसे कैसे दे दूँ। मैं ‘चक्लट ‘ लूँगा और कंचे भी। ” सरजू ने मुठ्ठी में और मजबूती से पैसे दबाये और दोनों हाथो को पीछे हटा लिया।
“अरे कौन सा हमेशा के लिए लेता हूँ , कल दे दूंगा। ”
“अरे ना…ना। कहाँ से लाएगा कल ? ना.… ना… उल्लू थोड़े ही हूँ। ” सरजू ने तमक के जवाब दिया।
निराशा की कालिख़ बबलू के चेहरे पे पुतने लगी। गाला रुंध गया ।
” दे दे ना याररर ssssss …. ” आगे उसने जो भी कहा वह सिसकियों की भेंट चढ़ गया।
“अ रेरेरेरे…. याररर………सिट्ट !!!” सरजू की भुकुटिया तन गई। ” लड़की के जैसे रोता क्यूँ है ? “माँ.. अह.अह.अह.… बहुत माsssss रेंssssss गी और अह.अह.अह बापू भीssssss । ”
सरजू का दिल थोड़ा पसीजा, “अच्छा अच्छा,ये भोंपू बंद कर अपना। मैं देता हु तुझको तीन रुपये…। ”
“सच।सच में देगा तू ? देख मज़ाक ना करियो। ” साँवले चेहरे पे धसी आँखे सुर्ख़ लाल हो चली थी। हिचकियों की बाढ़ पे बाँध बंध चुका था।
“हाँ ,बोला तो अभी, दूँगा पर एक सरत (शर्त) पर। ” सरजू की आवाज़ में दंभ था और गर्दन अभिमान से अकड़ी थी। आज दो दोस्तों के बीच का प्रेम लेनदार और देनदार के जंजीर में जकड़ गया था।
सुर्ख लाल आँखे सहम के सिकुड़ गयीं , “सरत?”
“हाँ सरत,देख भाई ,दे तो मैं दूंगा पर तीन के चार लूंगा। ” सरजू आज पक्का महाजन था और बबलू उसका कर्ज़दार।
बबलू मुसीबत का मारा था। कर्जदारो के लिए कोई विकल्प होते भी कहा हैं ? मान ली शर्त।
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करीब १ घंटा हो गया था बबलू को गए। माँ कबसे रास्ता तक रही थी। दूर से बबलू आता दिखा तो राहत की साँस ली। नासपीटे से एक काम ठीक से नहीं होता।
बबलू ने चुपचाप डबल रोटी का पैकट कमरे के कोने में रख दिया, जहा माँ की रसोई थी।
“क्यूँ रे ? कहाँ मरा था ? पातळ से ले के आया है का सौदा? ” माँ ने एक झिड़की थी।
बबलू ने कुछ जवाब ना दिया।
“बोलता काहे नही रे? भूत चिपका लाया है का ?”
“उधर पे पानी बहुत था , थोड़ा रुक गया था पेड़ के नीचे। ”
” अ….हाहा…पानी बहुत था …” माँ हाथ नचाते हुए बोली , “ये बोल की मस्ती सूझी थी। और जे कपड़ा देख तो, हे राम, हे राम !”
माँ सर पे हाथ रख के बैठ गई।
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क्या करे?माँ को बता दे सब कुछ। बताना तो पड़ेगा ही ,सरजू की उधारी भी तो चुकानी है। और फिर माँ ही तो है जिसकी आँचल की छाया में हमेशा आसरा मिलता है। माँ ही तो है जो सब समझती है ,सब जानती है , बिना बोले ही। बबलू को याद आया पिछले हफ्ते ही तो माँ ने बचाया था। बापू वैसे तो अच्छा है पर जब नशा करके आता है तो राक्षस बन जाता है बिलकुल माँ की उन कहानियो के जैसे जिसमें एक नर भेड़िया होता है। बापू और उसमे बस इतना फर्क है की नरभेड़िया केवल चांदनी रातों में नर भक्षी भेड़िया बनता है और बापू हर रात।
कितनी ही बार बापू ने बरसाती रातों में उसे और माँ को घर से बाहर खदेड़ा था। तब माँ का आँचल ही तो उसके लिए छत बनती थी। कितना सुरक्षित महसूस करता है माँ के साये में वो ,तब क्या आज माँ पीछे हट जायेंगी। नहीं ,कभी भी नहीं। उसने स्नेहपूर्ण एक दृष्टि माँ की ओर डाली।
“का रे ? काहे टुकुर टुकुर देखे है?” माँ ने एक पूरी नज़र बबलू पे डाली। “सुन तो, कही कोई टंटा तो नहीं कर आया रे ?”
माँ ने बिना बोले ही समझ लिया।
बबलू दौड़ के माँ के सीने से लग गया। “अरे का हुआ रे ? बताएगा भी कुछ ?” माँ ने प्यार से बबलू का सर सहलाया। रुका हुआ बाँध फिर से टूट पड़ा और माँ का आँचल गीला हो गया।
“अरे अरे ,मेरा दिल बैठा जाता है रे ,बता तो का , हुआ का ?”
“माँ मारेगी तो ना ?”
“ना रे ,ना मारूंगी ,बोल अब। ”
रोते -रोते बबलू ने सारा किस्सा सुना दिया। माँ सन्न रह गयी। गरीबी की छाया आख़िर उसके फूल से बच्चे पे पड़ ही गयी। आज वो पानी में दस का नोट नहीं गिरा था ,उसका बचपन डूबा था। एक दस के नोट ने उसके बच्चे को मजदूर बना दिया। कितना सोचा था माँ ने की गरीबी की छाया बच्चो पर पड़ने नही देगी पर कहा रोक पायी। आज उसके बच्चे को बेबसी का एहसास हुआ था और इसी के साथ उसका पहला कदम उस राह पे था जहा से बेबसी,गरीबी,लाचारी की शुरुवात होती है। नहीं – नहीं ,उसकी ज़िन्दगी उसके बच्चे नहीं जिएंगे। कोई मेंगाराम उनके बचपन की मासूमियत नहीं छीन सकता। वो नहीं छीनने देगी।
माँ ने बबलू की दोनों हथेलियों को प्रेम से सहलाया। दो बूँद कही किसी कोने से उन हथेलियों पे मोती सी जम गयी।
“पगले ,इत्ती सी बात? कल ले जाइयो पैसा। ” माँ ने मुस्कुरा कर कहा।
बबलू ख़ुशी से माँ से फिर लिपट गया। माँ ने रसोई जल्दी समेट ली , कल जल्दी उठना है। मालकिन से कुछ पैसे उधार लेने हैं।
Reblogged this on Sunshine on my tea cup and commented:
If you like Hindi short stories that pull your heart-string, please do read this….one of the best ones I’ve read in a long time!
I had loved this story when I read it for the first time. Today, it left the same tinkling feeling of emotions and innocence. Great read, Hema 🙂
मेहनत के २० मिनट २० वर्ष जैसे लगे। रुपये कमाने इतने कठिन होंगे दोनों ने सोचा न था True…..
After years I am reading a Hindi story & this one is the best I can get.. So touching.. Superbly penned.. 🙂 No words..
Thank you Nimz, I really appreciate your sweet words.
Thank You to you..for writing this.. 🙂
Stay blessed!!
[…] Aakhiri Note 2 […]