(कहानी अब तक https://hemagusain27.wordpress.com/2015/09/17 )
“सारंग, विवाह हम दोनों का ही हुआ है ,तो हम दोनों को ही एक दूसरे को समझाना होगा ,एक दूसरे के अनुसार ढलना होगा। मैं प्रयास करुँगी की तुम्हारी रुचियों का ध्यान रख सकूँ ,मन से,सच में। तुम्हे भी मेरी भावनाओं का आदर करना होगा। मैं पूरी कोशिश करूंगी की छोटी-छोटी बातो को दिल से ना लगाऊँ पर तुम्हे भी मेरी छोटी छोटी खुशियों का ध्यान रखना होगा। मेरे लिए तुम क़ीमती उपहार लाओ ऐसा मेरा सपना नहीं हैं ,हाँ अपने क़ीमती समय का एक छोटा सा हिस्सा मेरे नाम कर सको यही मेरे लिए अमूल्य तोहफा होगा। मुझे तुम अपने घर में रखा निर्जीव फर्नीचर ना समझ के एक इंसान की भांति व्यवहार करो,तभी हम दोनों एक सुखी वैवाहिक जीवन जी पाएंगे।”
संध्या कार चलाते हुए लगभग दस बार ये संवाद स्वयं में दोहरा चुकी थी। सारंग के सामने ठीक से अपनी विचार रख सके और इस बात का ख्याल रखे की उसको कोई ठेस ना पहुंचे ये बेहद जरूरी था। बिना संकोच के, बिना अटके वह अपनी बात रख सके इसके लिए उसने आने वाले पल को कितनी ही बार जी लिया था।
अपने विचारों में डूबी संध्या मायके से कितनी दूर निकल आई थी उसे खुद ही पता नहीं चला। माँ को लाख मना किया पर फिर भी ससुराल के सभी लोगों के लिए उन्होंने कोई न कोई उपहार रख ही दिए थे।
“क्या जरुरत है माँ ,इतना खर्चा करने की ? ” संध्या माँ पर नाराज़ हुई थी।
“ये तो रस्में है बिट्टो ,निभाना जरुरी है। बेटी पहली बार मायके में रहने आई थी तो खाली हाथ कैसे जाने देती। तू जब हमारी उम्र में आएगी तो तू भी ये सब अपनी गुड़िया के लिए करेगी। ” माँ ने फिर रस्मों की दुहाई दे कर संध्या की आप्पत्ति को सिरे से खारिज़ कर दिया था। कभी कभी माँ के पुराने विचारों पर संध्या खीज़ भी जाती थी।
कार चलाना उसने सारंग से ही सीखा था। सारंग ने पहली ही रात स्पष्ट कर दिया था कि साथ आने जाने के मामले में संध्या सारंग से कोई उम्मीद ना रखे। वास्तव में यह भी संध्या के लिए “ब्लेसिंग इन डिस्गाइज़ ” ही साबित हुआ। जो संध्या पड़ोस के घरों में जाने के लिए भी साथ ढूँढा करती थी ,वो अब अकेले ,बेझिझक शहर के चक्कर लगा सकती थी। इस बात के लिए वह सारंग की आभारी थी किन्तु कही मन का एक बदमाश कोना शरारत भी कर जाता था,तब संध्या की तीव्र उत्कंठा होती की काश सारंग भी साथ होते,बगल में ,बाहों में बाहें डाले।
कहीं सारंग बुरा तो नहीं मान लेगा और झगड़ा तो नहीं कर बैठेगा? अगर उसने मेरी बात सुनी ही नहीं तो। नहीं नहीं ,थोड़ा मान मनुहार करके आज सारंग से बात करके रहेगी। हिम्मत करके करना ही होगा फिर जो होगा देखा जायेगा। संध्या फिर अपने विचारो की उधेड़बुन में खो गई। अचानक तेज़ हॉर्न की आवाज़ से उसकी तन्द्रा टूटी,उसके ठीक सामने एक और कार तेज़ी से चली आ रही थी। संध्या के दिमाग ने साथ छोड़ दिए,हाथ सुन्न पड़ गए। कुछ समझ नही आया ,बुत सी बैठी रही और एक तेज़ धमाके और टायर के घिसटने की लंबी चरचराहट के साथ वह अपनी सुध बुध खो बैठी।
एक सेकंड के लिए उसकी पलकें खुली,सामने कुछ धुंधली तस्वीरें थी। संध्या की बोझिल आँखे सो गईं ।
I have to say so much for this little piece. Firstly, do you know the reason why I ask you to write poems? “मन का एक बदमाश कोना शरारत भी कर जाता था” It is because you can write like this.
Secondly, after the first paragraph, you caught me there. I thought Sandhya said it loud and wondered, how did she get such courage. But you blended it beautifully to the reality. Well done.
And the cliffhanger that you have left at the end is nail-biting. Keep it up! 🙂
I am blushing .. 🙂
Twists and turns and m loving it ..loving it.. 🙂 ❤
Now m on the edge of the seat.. Come up with the next chapter soon.. Please.. 🙂
M loving your loving attention too. 🙂
Oh …the last line has stung me 😦 the twist I hadn’t expected at all …I was so lost in the thoughts of sandhya ..that I didn’t had the time to think what will happen next…You are a powerful story teller 🙂
When I was writing this chapter,I didn’t know that it would be received with so much love and attention.
Thank you so much NJ.
🙂 Sometimes we underestimate our own talent 🙂
🙂
KAHANI AB TAK ME LINK KE SATH-SATH KAHANI AB TAK KA SANKSHEP ME LIKHANE KAE BADD AB AAGE LIKH DE TO KAHANI PADHANE KA MAZA BADH JAAYEGAA. AISE KAHANI ROCHAK DHANG SE AAGE BADH RAHI HAI.
राकेश जी ,पहले तो बहुत बहुत धन्यवाद,की आप संध्या पद रहे हैं और साथ में अपनी अमूल्य विचार भी दिए हैं ,मैं आगे के पोस्ट में ऐसा अवश्य करूंगी।
How beautiful is your pen Hemz! You blend emotions with clever writing and that is what makes you a superb writer! And the fun in series is the end, which you have always managed to create the suspense.
I was missing your comment Sri, this chapter is complete now. without your comment,it was so dull n incomplete.. 🙂