संध्या (लघु उपन्यास),भाग – IX

(कहानी अब तक .. https://hemagusain27.wordpress.com/2015/09/18 )

अब तक आपने पढ़ा  की संध्या एक नवविवाहिता है जो ससुराल में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। उसका पति सारंग का व्यवहार उसके प्रति उदासीन है। संध्या विवाह के बाद कुछ दिनों के लिए अपने मायके रहने जाती है वहाँ उसे अपनी बचपन की सहेली उषा से मिलती है। उषा के साथ कुछ अच्छा समय व्यतीत करने के बाद संध्या कार से ससुराल की ओर निकलती है किन्तु रास्ते में उसकी कार दुर्घटनाग्रस्त  हो  जाती है। अब आगे… 

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बहत्तर घंटे की बेहोशी और दो बड़े ऑपरेशन के बाद संध्या को होश आया।एक्सीडेंट से उसके चेहरे का दाहिना हिस्सा बुरी तरह से घायल हुआ था ,कांच के असंख्य छोटे टुकड़े  उसके चेहरे में जा धसे थे। डॉक्टर बड़ी मुश्किल से उसकी दृष्टि बचा पाये थे किन्तु उसके  ‘टीयर डक्ट ‘ पूरी तरह से नष्ट हो गए थे। दोनों पैर और  बायाँ हाथ फ्रैक्चर  थे। पुरे शरीर पर पट्टियाँ चढ़ी थी। असहनीय दर्द से संध्या  कराह उठी मानों उसकी शरीर की सारी  हड्डियाँ एक साथ टूट गई हो।

क्या हुआ था? संध्या को कुछ ध्यान नहीं आया। उसने हाथ उठाने की कोशिश की पर हिला ना पाई।

“हिलो नहीं ,स्टिचेस् टूट जायेंगे। ” शायद नर्स थी ,आँखों पे भी पट्टी चढ़ी  होने के कारण संध्या कुछ देख ना पाई। “डॉक्टर ,पेशेंट अब होश में है ,आप आ जाइए।मैं पेशेंट के रिलेटिव्स को इन्फॉर्म कर देती हूँ। ” शायद मोबाइल पर बात कर रही थी ।

नर्स ने दर्द निवारक कोई इंजेक्शन संध्या को लगा दिया।

किसी ने संध्या का हाथ अपने हाथों में ले लिया। अपने हाथों में पड़े गर्म आँसुओ की गर्माहट से तुरंत पहचान गई।

“माँ ” बड़े यत्ने से एक शब्द उसके गले से फूटा।

माँ फफक-फफक के रो पड़ी। अपनी बच्ची ऐसी हालत देख कर कौन माँ हौंसला रख सकती है।

” मैडम ,संध्या के लिए स्ट्रेस बिलकुल भी ठीक नहीं है।  उसकी आँखों पे और चेहरे के स्टिचेस टूटने का खतरा है। इसलिए संभालिये अपने आप को। ” डॉक्टर आ चुके थे।

माँ ने दिल कड़ा किया और आँसू पोंछ लिए।

“अभी और दस दिन और इन्हे एडमिट रहना होगा। आँखों की पट्टी एक हफ़्ते में हट जाएँगी पर पैरो और हाथों के फ्रैक्चर हटने में अभी वक्त लगेगा। ” डॉक्टर ने जांच के बाद कहा।

माँ  ने प्रेम से संध्या का के बाल सहलाये और संध्या का मन सारंग के आलिंगन के लिए व्याकुल हो उठा। कहाँ हो  सारंग?

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आज संध्या को हॉस्पिटल में आठ दिन हो चुके थे। संध्या अब बेहतर थी ,बात करने लगी थी। आँखों की पट्टियाँ भी हट चुकी थी। पर इस दुर्घटना की अमिट छाप जीवन भर उसके साथ रहने वाली थी .संध्या के चेहरे का दाहिना भाग विकृत को चुका था।

“माँ ,सारंग आये ?” संध्या का रोज़ का ही प्रश्न  होता।

“आया था बेटा।तीन दिन वही तो था यहाँ पर ,जब तू बेहोश थी। वो ही क्यों, तेरे सास -ससुर भी यही थे।” माँ  नजरें चुराते हुए बोलती।  माँ को तो ठीक से झूठ बोलना भी नहीं आता।  “तेरी सास की तबियत ख़राब है ,इसलिए वो लोग अब नहीं आ पा रहे।”

और संध्या सोचती की सास की तबियत ख़राब है? क्या  माँ  ही उसके लिए सब कुछ है,पत्नी कुछ भी नहीं। पत्नी मरते मरते बची है पर एक बार भी उसको देखने नहीं आया ना कोई फोन किया। सारंग संध्या के प्रति हमेशा से ही उदासीन रहा था किन्तु विपपत्ति की इस घड़ी में जब उसे हर पल संध्या के साथ रहना चाहिए, उसका ऐसा अमानवीय रूप देखने को मिलेगा संध्या को सपने में भी इसका एहसास नहीं था । संध्या का मन कसैला  हो गया।ना सास-ससुर ने उसका मुँह देखा। अचानक संध्या चोंक उठी, दिमाग़ में एक विचार कौंधा । मुँह ,हां शायद यही वजह है ,मेरा विकृत चेहरा। शायद उसे ये लगता है की अब मेरे कारण उसे समाज में शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी। “मैं चाहता हूँ  की मेरी पत्नी के कारण सदा गर्व से मेरा सर ऊँचा रहे ,समाज में मेरी एक  रेपुटेशन ‘है।  “ ,संध्या को पहली रात में बोले गए सारंग के शब्द याद आ गए।

छी: कैसे लोग है ये सब ,संध्या का मन घृणा से भर उठा।

(क्रमश:)

14 thoughts on “संध्या (लघु उपन्यास),भाग – IX

  1. Oh!! This made me sad!! 😦

    Why is Sarang and her sasural behaving like this??

    Waiting for the next.. Every chapter is increasing the eagerness.. 🙂
    Come up with the next soon Di.. 🙂
    You are really superstar.. 🙂 ❤

  2. Now this was something I didn’t expected I thought this tragedy will bring them closer 😦 you are bringing twist and turns in each and every chapter 🙂

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