संध्या (लघु उपन्यास),भाग – XIV

(कहानी अब तक https://hemagusain27.wordpress.com/2015/09/26)

fotolia_70653545

अब तक आपने पढ़ा  की संध्या एक नवविवाहिता है जो ससुराल में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। उसका पति सारंग का व्यवहार उसके प्रति उदासीन है। संध्या कुछ दिनों के लिए अपने मायके रहने जाती है वहाँ उसे अपनी बचपन की सहेली उषा से मिलती है। उषा के साथ कुछ अच्छा समय व्यतीत करने के बाद संध्या कार से ससुराल की और निकलती है किन्तु रास्ते में उसकी कार दुर्घटनाग्रस्त  हो  जाती है। संध्या  किसी प्रकार बच तो जाती है किन्तु उसका चेहरा बुरी तरह से घायल होता है। संध्या सारंग का इंतज़ार करती है ,किन्तु ना सारंग और ना ही ससुराल से कोई संध्या को मिलने आता है। संध्या इस बात से बड़ी आहत होती है। उसे पता चलता है की जिस कार से उसकी कार दुर्घटनाग्रस्त हुई थी ,उसमे बैठा  एक मृत्यु हुई थी और एक गर्भवती का गर्भ नष्ट हुआ था ,संध्या उस महिला से मिलने जाती है ,तब उसके सामने कटु सत्य आता  है की जो व्यक्ति मरा वह और कोई नहीं उसका पति सारंग था। संध्या अपना मानसिक संतुलन खो बैठी।संध्या की सहेली उषा ,संध्या और उसकी माँ को अपने साथ मुंबई ले चलती है।उषा संध्या का परिचय चिराग़ से करवाती है ,संध्या ठीक होने लगती है। अब आगे

“तेरा ये चिराग़ तो जादूगर निकला बेटा, ”  शाम को माँ उषा के साथ बैठी थी।

” जादूगर नहीं है आंटी ,मनोचिकित्सक है।” माँ ने भवें थोड़ी ऊपरउठाई, ” चिराग़ पर मुझे  पूरा भरोसा था,उसका १०० प्रतिशत सफल रिकॉर्ड रहा है। जब मैंने चिराग़ को संध्या का केस बताया तो उसी ने मुझे कहा की संध्या अब तक ठीक नहीं हुई क्योंकि थेरेपिस्ट के साथ वह व्यक्तिगत रूप से जुड़ नहीं पा रही ,दूसरे शब्दों में उनका आपस में रेपो नहीं बन रहा।  इसलिए हमने चिराग़ को दोस्त  की तरह परिचित करवाया। बाकी चिराग़ अपना काम अच्छी तरह से जनता है और उसने बखूबी से किया भी। नतीज़ा आपके सामने है। “

“ओह ,मैं तो कुछ और ही समझी थी। “

” कुछ और ?”

” संध्या और चिराग़  को साथ देखा तो फिर से संध्या के घर बसने का सपना देख बैठी। ” माँ के स्वर में थोड़ी निराशा थी।

“कहीं संध्या भी तो.… ?”  थोड़ी देर की ख़ामोशी के बाद उषा बोली,

 ” क्या मैं  तो….. ?” संध्या ने कमरे में प्रवेश किया।

” कुछ नहीं बिट्टो ,बस हम सोच रहे थे की चिराग़ और तू…….. मतलब अगर साथ होते तो?”

संध्या समझ रही थी कि माँ क्या कहना चाहती थी।

” माँ एक शादी ने जो जो घाव दिए हैं वह बहुत गहरे हैं ,उन्हें ही भरने में अभी वक़्त लगेगा ,दूसरी शादी के बारे में मैं  अभी सोच भी नहीं सकती। रही चिराग़ की बात,तो वह नामुमकिन है ,क्योंकि……”

संध्या उषा के सामने आ खड़ी हुई , ” क्योंकि चिराग़ उषा का मंगेतर है। ” यह बात चिराग़ ने मुझे बहुत पहले ही  बता दी थी। “

” सच उषा ,माफ़ करना  बेटा मुझे पता होता तो मैं कभी ऐसी बात नहीं करती। मैं तेरे लिए बहुत खुश हूँ।” माँ की ख़ुशी पारावार ना था।

” सॉरी आंटी ,पर आप लोग अभी जिस स्थिति में थे ,मुझे ये बात बताना ठीक नहीं लगा। “

” उषा ,तूने बहन से बढ़कर मेरे लिए किया है ,पता नहीं मैं तेरा  एहसान कैसे उतार पाऊँगी ?”  संध्या उषा के गले जा लगी।

“वह तू अभी के अभी उतार सकती है…..” उषा तपाक से बोली।

” कैसे? बोल ना। ……. “

” मेरे लिए मस्त सी ‘ रेड थाई करी’ बना कर…… बहुत जोरों  की भूख लगी है याsssssssर.…चूहों के भी पैर टूट गए अब तो उछल -उछल कर.…। ” उषा ने  ऐसा मुँह बनाया की घर भर में हँसी  का फ़व्वारा छूट पड़ा।

——————————————–

संध्या शांत खड़ी सागर की लहरो को पढ़ने की कोशिश कर रही थी। डूबते सूरज  की लाली अपनी लाल चुनर ओढ़े समुन्दर में अठखेलिया खेल रही थी। कितना ठहराओ है सागर के पानी में और लहरो को देखो ,बार बार बेसब्र  हो कर चट्टानों से टकराती हैं ,और चोट खा के वापस लौट आती हैं फिर से वापस टकराने के लिए।सूरज हर रोज़ डूबता है ,फिर नए दिन के साथ उगने के लिए। हर दिन  नयी दौड़ ,हर दिन के लिए एक नया सपना और इन सबके लिए रोज़ नया संघर्ष। संघर्ष अपने अस्तित्व के लिए ,संघर्ष ज़िन्दगी के लिए …।

” सागर,संध्या और सूर्यास्त, कितना  अद्भुत और कितना  मनोरम लगता है, है ना ? “

गले में कैमरा लटकाए,ज़ेबमें हाथ डाले, नीली जीन्स और सफ़ेद टी-शर्ट पहने वह संध्या के ठीक पीछे खड़ा था।

“बाय द वे, मैं संघर्ष और आप.……?”

(समाप्त)