संध्या (लघु उपन्यास),भाग – V

( कहानी अब तक  https://hemagusain27.wordpress.com/2015/09/14)

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“पर माँ ,हम दोनों बिलकुल अलग हैं। ” संध्या मलमास ( हिन्दू शास्त्रों के अनुसार मलमास वह विशेष  तिथियाँ होती है जिसमे कोई भी शुभ कार्य वर्जित होता है। इस समय  नव विवाहिताएं अपने मायके में एक माह कर लिए रहने आती है तथा ससुराल पक्ष से भेंट नहीं करती ) में अपने मायके आई थी।

“बिट्टो ,तुम दोनों दो अलग-अलग व्यक्तित्त्व हो ,अलग-अलग जगह पले – बढ़े को. तुम दोनों की परवरिश भिन्न है तो फिर तुम दोनों एक जैसे कैसे हो सकते हो? पर तुम दोनों को एक दूसरे की पसंद -नापसंद को समझाना होगा ,खास कर तुझको।  अपने पति की पसंद में रूचि दिखा ,थोड़ा धैर्य से काम ले।  तुझे  ही उन लोगो के अनुसार खुद को ढालना होगा ,आदमी कभी नहीं बदलता,तुझे ही बदलना होगा , कदम कदम पे समझौते करने होंगे।  ये एक कटु सत्य है जितनी जल्दी अपना ले, उतनी जल्दी तेरी गृहस्थी की गाडी रफ़्तार पकड़ेगी। “

माँ  ने अपना अनुभव संध्या को समझा दिया ।

“पर ये तो अन्याय है। मैं अपने रिश्ते-नाते पीछे छोड़ कर गयी हूँ ,अपने घर का आराम त्याग कर उनके घर को अपना रही हूँ  तो क्या उन का मेरे प्रति कोई फ़र्ज़ नहीं।  क्या उनका कर्तव्य नहीं बनता की वे लोग भी मेरी खुशियो का ध्यान रखें , मेरी इच्छाओं का सम्मान करें ? सारंग जो अपने लिए ‘स्पेस ‘ की मांग करता है ,क्या उसके लिए मेरी स्पेस का कोई महत्त्व नहीं ? क्या हक़ उसे मुझ पर निज़ी टिप्पणियाँ करने का, मुझे बार -बार बेवज़ह अपमानित करने का?”

“बिट्टो गृहस्थी में अहम की जगह नही होती ,औरत को अपना अहम् त्यागना ही पड़ता है। “

“ये अहम्  नही मेरा आत्म -सम्मान है माँ। “

“अब  तुम पड़ी लिखी लड़कियों में यही समस्या है, जरा पद लिख नहीं लेती कि नाक ऊँची कर लेती हो। बिट्टो गृहस्थी में ये सब नहीं चलता ,झुकना औरत को ही पड़ता है. अब तू ही देख ले कि तुझे  अपनी गृहस्थी जमानी है या नाक ऊँची रखनी है।  “

“मैं  नहीं मानती माँ , गृहस्थी हम दोनों की है ,उसे भी मेरी भावनाओं की कद्र करनी होगी। उसे मुझे अपनी पत्नी होने के नाते उचित सम्मान देना ही होगा। ” संध्या दृढ संकल्प थी।

“बिट्टो ,अगर तुझे अपनी जगह चाहिए तो तुझे उसे स्वयं अर्जित करना होगा ,कमाना  पड़ेगा। प्रेम और धैर्य से।  धीरे धीरे सब हो जायेगा। पर तुझे अभी मौन रहना होगा , बहुत  कुछ सहना भी  होगा , अपनी गृहस्थी अपने अनुसार ढाढ़ालने के लिए वर्षों तपस्या करनी होगी ,मैं छोड़ कर हम पे ध्यान देना होगा । औरत को ही सब देखना भालना पड़ता है।  यही रीत है ,और नियम भी। “

वह  रात  संध्या ने करवटें लेते काटी। संध्या का मन अभी भी माँ की बात मानने को राजी ना था ,पर माँ  की सफल पारिवारिक जीवन को और अनुभव को देखते हुए उसने माँ की बात पर विचार करने का निश्चय किया।  शायद यही तरीका है नए घर में और घरवालों के मन में अपना स्थान बनाने का। शायद उसे सारंग को समय देना चाहिए। अपने आप  को समय देना चाहिए।  फिर समय ही तो है जो बड़े से बड़ा  घाव भर देने में सक्षम है ,शायद सारंग और उसके बीच बन आई खाई को भी भर दे।

नई सुबह के साथ संध्या ने नयी शुरुवात करने का निश्चय लिया। सामने शीशे में अपने अक्स पर   एक भरपूर नज़र डाली।  “हाँ ,मैं ला सकती हूँ परिवर्तन,मुझे लाना ही  होगा । “

आज़ संध्या में कुछ अलग़ ही बात थी। कितने दिनों बाद उसकी खोई मुस्कान लौटी थी।

(क्रमश:)

12 thoughts on “संध्या (लघु उपन्यास),भाग – V

  1. When you are telling the story of Sandhya, you are actually telling the story of thousands of Indian girls…’Compromise’, ‘Adjustment’ are necessary words in a relationship. But the questions is: till how far? I too cannot wait for the next!

    • That’s why I use the quote “life of an ordinary woman” while sharing it on other sites. Sandhya is a confident,educated girl. Sooner or later,she will get what she deserves. Thanks for always being with me..Love you. ❤

  2. Come with the next soon.. 🙂
    Hema Di, Love you!!

    And one funny fact is my Hindi reading is getting improved day by day.. Now I am faster than before… 🙂
    I know that’s strange.. but Thank You for that.. 🙂 ❤
    Keep on writing..

  3. When I read your these post it is as if I am listening a friend who is sharing her internal struggle with me 🙂 Very well said it life on ordinary girl that resides in each women of our country 🙂 Beautiful 🙂

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